शायद ही इस दुनिया का कोई व्यक्ति हो , जिसने अपने जीवन काल में हस्त मैथुन न किया हो / हस्त मैथुन की क्रिया दुनिया के सभी नर और नारियों मे व्याप्त है / यह आदि काल से चला आ रहा मानव स्वभाव है , जो अनन्त काल तक चलेगा /
ऐसा क्यो होता है, यह एक विचारणीय विषय है ? फिर भी यह कहा जा सकता है कि ऐसा इसलिये होता है कि आज के नवजवानों में सेक्स के प्रति कुछ अधिक ही जागरुकता देखने में आती है / हमें अपने बचपन के दिनों की याद है , जब हम गांव में रहते थे और हमारे साथ मोहल्ले और टोले की बड़ी लड़्कियां साथ साथ खेलती रहती थी और हम सभी सेक्स के बारे में कोई विषेश ग्यान नहीं रखते थे / उस समय न हमे समाचार पत्र पड़ने को मिलते थे / न सन्चार के दूसरे साधन थे जैसे रेडियो, सिनेमा इत्यादि / यह सब शहर के लोगों तक ही सीमित था और इसे एक विशेष वर्ग ही उपयोग करता था / १६ या १७ साल की उम्र तक हमे सेक्स के बारे मे बहुत कम जानकारी थी /
आज स्तिथी बिलकुल उलट है / सभी जगह प्रचार माध्यम उपलब्ध है चाहे वह गांव हो या शहर, समाचार पत्र, मैग्जीन, टी०वी०, रेडियो, इन्टर्नेट सभी जगह उपलब्ध है / शिक्षा का भी बहुत प्रचार और प्रसार हो रहा है / मेरे गांव के क्षेत्र में मीलों मील एक भी डिग्री कालेज नहीं था, आज हालात यह है कि कई दर्जन डिग्री कालेज शिक्षा दे रहे है / गां व गांव शिक्षा का प्रसार है / पहले फैशन नहीं था, स्वयम को खूबसूरत दिखाने की कोई हॊड़ नहीं थी / आज सब एक दूसरे से ज्यादा खूबसूरत दिखना और दिखाना चाह्ते है / यह सब समय के परिवर्तन की बात है /
यह सब परिवरतन होन्गे तो लजिमी है कि इसका असर भी होगा / जैसे सभी क्षेत्रों में विकास हुआ, सेक्स के क्षेत्र में भी लोगों की जानकारियां बढने लगी है और जिस बात को छुपाकर जानने की चेष्टा की जाती थी , आज वह खुले आम उपलब्ध है / इसे जब चाहे तब देख सकते है / ईन्टर्नेट पर तो ऐसी बहुत सी साइटे है जिनमे लाखों और करोड़ो सम्भोग करने की वीडियोज है जिन्हे देखकर सेक्स के प्रति लोग अपनी अपनी व्यक्तिगत धारणायें बना लेते है /
हस्त मैथुन करने की प्रेरणा ऐसे ही मिलती है / पुरूषों मे हस्त मैथुन की आदत सबसे ज्यादा होती है / इसका कारण है पुरूष किसी स्त्री को देखकर बहुत शीघ्र उत्तेजित हो जाते है, जबकि महिलाओं में ऐसा नही होता / पुरूषों का शीघ्र उत्तेजित होना एक प्राकृतिक फेनामेना है , जो उनके आटोनामिक नरवस सिस्टम, एन्डोक्राइनल सिस्टम, एज फैक्टर, मान्स्पेशियों की क्षमता, उनके स्वभाव आदि पर आधारित होता है / यही सब मिलकर सेक्स भावना का उदय करती है /
किशोरावस्था में कुदरती तौर पर शरीर की प्रत्येक अन्ग की विकास करने की प्रवृति होती है /इसी अवस्था में हार्मोन सिस्टम के अधिक सक्रिय होने के कारण मस्तिश्क मे सेक्स की प्रक्रिया को उत्तेजित करने वाले तत्व शारीरिक अन्गों को अति उत्तेजित करते है, जिससे सेक्स करने की इच्छा अधिक बलवती होती है / सेक्स के लिये कुदरती माध्यम तो स्त्री की योनि ही है और इसी माध्यम यानी योनि से ही मिलन करके सेक्स का कार्य सम्पूर्ण होता है , लेकिन जब यह माध्यम उपलब्ध नहीं होता तो लोग दूसरा माध्यम ढून्ढ लेते है जिनमे गुदा मैथुन या हस्त मैथुन या अन्य माध्यम जिनसे किसी न किसी तरह से वीर्य पात कराया जा सके और सेक्स की उत्तेजना को शान्त किया जा सके /
इसीलिये आयुर्वेद में वीर्य की रक्षा करने के लिये निर्देश दिये गये है ्कि किस तरह से वीर्य की रक्षा करनी चाहिये / आयुर्वेद मे वीर्य ्की रक्षा करने के लिये क्यों कहा गया है ? इसके पीछे कारण है /
वीर्य सुरक्षित करने के लिये आयुर्वेद ब्रम्ह्चर्य से रहने के लिये आग्या देता है / इसीलिये जब जीवन के चार हिस्से किये गये तो एक हिस्सा यानी पहला हिस्सा ब्रम्ह्चर्य के लिये ही स्थापित किया गया है / वीर्य आयुर्वेद के अनुसार सप्त धातुओं की एक धातु है जो शरीर को धारण करती है यानी शरीर के सार भाग को सुरक्षित करके शरीर को स्थापित करती है / यही शरीर को ओज प्रदान करता है / इसके नष्ट होने से शरीर की कान्ति, बल, याद करने की क्षमता, शरीर के प्रतिदिन के क्रिया कलाप आदि सब कमजोर हो जाते है /
इसलिये हस्त मैथुन की आदत से हमेशा बचना चाहिये / जिन्हे यह आदत हो उनको चाहिये कि वे अपनी शादी जल्दी करें और सुखमय जीवन का आनन्द प्राप्त करें / जो शादी नहीं कर सकते बे ब्रम्ह्चर्य ब्रत का पालन करें /
ऐसे लोगों को सोचना और विचार करना चाहिये कि “जिस वीर्य को लिन्ग से बाहर निकालने के लिये कितने आनन्द का अनुभव होता है, यदि उसी वीर्य को उसी स्थान पर रहने दें तो शरीर को कितना आनन्द मिलेगा “
ऐसा क्यो होता है, यह एक विचारणीय विषय है ? फिर भी यह कहा जा सकता है कि ऐसा इसलिये होता है कि आज के नवजवानों में सेक्स के प्रति कुछ अधिक ही जागरुकता देखने में आती है / हमें अपने बचपन के दिनों की याद है , जब हम गांव में रहते थे और हमारे साथ मोहल्ले और टोले की बड़ी लड़्कियां साथ साथ खेलती रहती थी और हम सभी सेक्स के बारे में कोई विषेश ग्यान नहीं रखते थे / उस समय न हमे समाचार पत्र पड़ने को मिलते थे / न सन्चार के दूसरे साधन थे जैसे रेडियो, सिनेमा इत्यादि / यह सब शहर के लोगों तक ही सीमित था और इसे एक विशेष वर्ग ही उपयोग करता था / १६ या १७ साल की उम्र तक हमे सेक्स के बारे मे बहुत कम जानकारी थी /
आज स्तिथी बिलकुल उलट है / सभी जगह प्रचार माध्यम उपलब्ध है चाहे वह गांव हो या शहर, समाचार पत्र, मैग्जीन, टी०वी०, रेडियो, इन्टर्नेट सभी जगह उपलब्ध है / शिक्षा का भी बहुत प्रचार और प्रसार हो रहा है / मेरे गांव के क्षेत्र में मीलों मील एक भी डिग्री कालेज नहीं था, आज हालात यह है कि कई दर्जन डिग्री कालेज शिक्षा दे रहे है / गां व गांव शिक्षा का प्रसार है / पहले फैशन नहीं था, स्वयम को खूबसूरत दिखाने की कोई हॊड़ नहीं थी / आज सब एक दूसरे से ज्यादा खूबसूरत दिखना और दिखाना चाह्ते है / यह सब समय के परिवर्तन की बात है /
यह सब परिवरतन होन्गे तो लजिमी है कि इसका असर भी होगा / जैसे सभी क्षेत्रों में विकास हुआ, सेक्स के क्षेत्र में भी लोगों की जानकारियां बढने लगी है और जिस बात को छुपाकर जानने की चेष्टा की जाती थी , आज वह खुले आम उपलब्ध है / इसे जब चाहे तब देख सकते है / ईन्टर्नेट पर तो ऐसी बहुत सी साइटे है जिनमे लाखों और करोड़ो सम्भोग करने की वीडियोज है जिन्हे देखकर सेक्स के प्रति लोग अपनी अपनी व्यक्तिगत धारणायें बना लेते है /
हस्त मैथुन करने की प्रेरणा ऐसे ही मिलती है / पुरूषों मे हस्त मैथुन की आदत सबसे ज्यादा होती है / इसका कारण है पुरूष किसी स्त्री को देखकर बहुत शीघ्र उत्तेजित हो जाते है, जबकि महिलाओं में ऐसा नही होता / पुरूषों का शीघ्र उत्तेजित होना एक प्राकृतिक फेनामेना है , जो उनके आटोनामिक नरवस सिस्टम, एन्डोक्राइनल सिस्टम, एज फैक्टर, मान्स्पेशियों की क्षमता, उनके स्वभाव आदि पर आधारित होता है / यही सब मिलकर सेक्स भावना का उदय करती है /
किशोरावस्था में कुदरती तौर पर शरीर की प्रत्येक अन्ग की विकास करने की प्रवृति होती है /इसी अवस्था में हार्मोन सिस्टम के अधिक सक्रिय होने के कारण मस्तिश्क मे सेक्स की प्रक्रिया को उत्तेजित करने वाले तत्व शारीरिक अन्गों को अति उत्तेजित करते है, जिससे सेक्स करने की इच्छा अधिक बलवती होती है / सेक्स के लिये कुदरती माध्यम तो स्त्री की योनि ही है और इसी माध्यम यानी योनि से ही मिलन करके सेक्स का कार्य सम्पूर्ण होता है , लेकिन जब यह माध्यम उपलब्ध नहीं होता तो लोग दूसरा माध्यम ढून्ढ लेते है जिनमे गुदा मैथुन या हस्त मैथुन या अन्य माध्यम जिनसे किसी न किसी तरह से वीर्य पात कराया जा सके और सेक्स की उत्तेजना को शान्त किया जा सके /
इसीलिये आयुर्वेद में वीर्य की रक्षा करने के लिये निर्देश दिये गये है ्कि किस तरह से वीर्य की रक्षा करनी चाहिये / आयुर्वेद मे वीर्य ्की रक्षा करने के लिये क्यों कहा गया है ? इसके पीछे कारण है /
वीर्य सुरक्षित करने के लिये आयुर्वेद ब्रम्ह्चर्य से रहने के लिये आग्या देता है / इसीलिये जब जीवन के चार हिस्से किये गये तो एक हिस्सा यानी पहला हिस्सा ब्रम्ह्चर्य के लिये ही स्थापित किया गया है / वीर्य आयुर्वेद के अनुसार सप्त धातुओं की एक धातु है जो शरीर को धारण करती है यानी शरीर के सार भाग को सुरक्षित करके शरीर को स्थापित करती है / यही शरीर को ओज प्रदान करता है / इसके नष्ट होने से शरीर की कान्ति, बल, याद करने की क्षमता, शरीर के प्रतिदिन के क्रिया कलाप आदि सब कमजोर हो जाते है /
इसलिये हस्त मैथुन की आदत से हमेशा बचना चाहिये / जिन्हे यह आदत हो उनको चाहिये कि वे अपनी शादी जल्दी करें और सुखमय जीवन का आनन्द प्राप्त करें / जो शादी नहीं कर सकते बे ब्रम्ह्चर्य ब्रत का पालन करें /
ऐसे लोगों को सोचना और विचार करना चाहिये कि “जिस वीर्य को लिन्ग से बाहर निकालने के लिये कितने आनन्द का अनुभव होता है, यदि उसी वीर्य को उसी स्थान पर रहने दें तो शरीर को कितना आनन्द मिलेगा “